प्रणव मुखर्जी…एक ऐसा नाम जिसकी धमक इंदिरा गांधी जैसी शक्तिशाली नेता हो या पीवी नरसिम्हा राव जैसे धुरंधर प्रधानमंत्री सबके बीच थी। हर कांग्रेसी उनकी प्रतिभा का कायल रहा है लेकिन जो शख्स प्रधानमंत्री बनकर इस देश को एक नई दिशा दे सकता था वह उस पद पर कभी पहुंच नहीं सका या फिर कहें कि कुछ स्वार्थी नेताओं ने वंश परंपरा की परिपाटी को जारी रखने के उद्देश्य से उन्हें प्रधानमंत्री बनने ही नहीं दिया। कांग्रेस पार्टी कटघरे में ही ना खड़ी हो जाए यही सोचकर उन्हें राष्ट्रपति बनाया गया कि कांग्रेस की छवि बची रहे।
लेकिन पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने राजनीतिक वैमनस्यता से बहुत ऊपर उठकर 26 मई 2014 के बाद आई मोदी सरकार के सही काम को ‘सही’ कहा और गलत को ‘गलत’ कहने से भी नहीं हिचके। वे ऐसे कांग्रेसी राष्ट्रपति बनकर आए जो हर कांग्रेसी की घिसी-पिटी लीक से हटकर काम करते रहे।
आज जब भारत सरकार ने राजनीतिक वैमनस्यता को पीछे छोड़कर उन्हें ‘भारत रत्न’ से सम्मानित करने का फैसला लिया है तो ये हैरान करने वाली ही नहीं बल्कि एक ऐसी परम्परा की शुरुआत होने जा रही है जहां भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने एक ऐसा उदाहरण पेश किया है कि वह पार्टी या चाटुकारों को पुरस्कृत करने में विश्वास नहीं करती है। उसने एक कांग्रेस के नेता को सम्मानित कर साफ संदेश दिया है कि वह प्रतिभा को सम्मानित करने में भरोसा रखती है चाहे वह उसकी विरोधी पार्टी के नेता ही क्यों ना हो।
कांग्रेस के लिए यह गहन चिंतन का विषय है कि क्या अब तक सारे अच्छे काम करने वाले कांग्रेस में ही पैदा हुए थे या फिर अच्छे कार्य करने वाले और भी थे जो उनकी विचारधारा से हटकर थे और उन्हें उनका सम्मान नहीं दिया गया। वजह कुछ भी हो लेकिन मोदी सरकार ने एक बार फिर एक परम्परा को तोड़कर कांग्रेस पार्टी को आइना तो दिखा ही दिया है।