पन्ना की धरती को यूं ही रत्नगर्भा नहीं कहा जाता है। मंगलवार की सुबह जब जिला मुख्यालय से लगभग 9 किमी दूर कृष्ण कल्याणपुर नाम के गांव में हीरा विभाग से पट्टा लेकर खदान खोद रहे मोतीलाल प्रजापति ने कंकड़ जैसी चीज को उथली खदान से टोकनी में पानी से धोने के बाद जमीन पर सुखाने रखा तो उनके होश उड़ गए। दरअसल वो पत्थर नहीं बल्कि करोड़ों की कीमत का एक 42 कैरेट 59 सेंट का हीरा था। जांच में पाया गया कि 57 साल बाद सबसे बड़ा जैम क्वालिटी का हीरा पन्ना की खदान से निकला है। इससे पहले 1961 में 44 कैरेट 55 सेंट का हीरा मिला था। हीरा की बिक्री के बाद साढ़े ग्यारह प्रतिशत रॉयल्टी एवं 1 प्रतिशत इनकम टैक्स काटा जाता है। अगर पैन कार्ड नहीं है तो 20 प्रतिशत टैक्स तक काटा जाता है। हीरा पारखी अनुपम सिंह ने कहा कि मोतीलाल से हीरा लेकर उसे सरकारी खजाने में जमा करा लिया है।
प्रक्रिया पूरी होने के बाद अगले महीने आयोजित होने वाली हीरों की शासकीय नीलामी में इस हीरे को बिक्री के लिए रख दिया जाएगा। हालांकि उन्होंने हीरे की कीमत तो नहीं बताई, लेकिन कहा कि नीलामी का रिकॉर्ड बनने जा रहा है। मोतीलाल ने 22 सितंबर को उथली खदान का पट्टा लिया और उसे सिर्फ 18 दिन में ही मेहनत का फल भी मिल गया। मोतीलाल का कहना है कि अब हमारी जिंदगी बदल जाएगी। हीरा की बिक्री से जो रुपए मिलेंगे, उससे हमारा पूरा परिवार सुख-चैन से रहेगा।
सरकार की ओर से हीरे की खुदाई के लिए खदानें पट्टे पर दी जाती है। बड़ी खदानें बड़ी कंपनियां संचालित करती हैं। इसके अलावा खेतों में भी जमीन के कुछ हिस्से को पट्टे पर दे दिया जाता है। ये पट्टे ज्यादातर खेत मालिक या मजदूर वर्ग ही लेता है। ये यहां खुदाई करते हैं। हीरे की इसी खुदाई को उथली खदान कहते हैं।
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